लखनऊ, ब्योरो रिपोर्ट। उत्तर प्रदेश की कमान समाजवादी की हाथों से भाजपा ने ले ली जिसके बाद योगी राज का दूसरा कार्यकाल चल रहा है। मगर पिछले डेढ़ दशक से बसपा सत्ता से बाहर है। डेढ़ दशक से बसपा केवल सत्ता से ही बाहर नहीं हुई बल्कि बसपा का जनाधार भी इतना गिर गया है कि दलित वोट बैंक भी बसपा नहीं बचा पाई है। जिसके चलते बसपा को अब राष्ट्रीय दल के दर्जा से बचाना मुश्किल हो गया है। इसको लोकसभा चुनाव से पहले निकाय चुनाव को लेकर बसपा की अहम बैठक हुई।
रविवार को बहुजन समाज पार्टी की एक अहम बैठक हुई। इसमें बसपा सुप्रीमो मायावती ने निकाय चुनाव को लेकर खुद पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिशा-निर्देश दिए। यहां निकाय चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव पर फोकस रखा गया है। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों से जिलाध्यक्ष सहित पदाधिकारियों को बुलाया गया। बतादें कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में निकाय चुनाव होना है। एक तरह से ये चुनाव ट्रायल के तौर पर देखे जा रहे हैं। इसीलिए पहली बार बसपा अपने सिंबल पर निकाय चुनाव के मैदान में उतरने जा रही है। पहली बार बसपा ने रणनीति तैयार की है। इसके पीछे एक वजह बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाए रखना भी है। दूसरी तरफ, 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दलित-पिछड़ा और मुस्लिम वोटर जोड़ने पर फोकस है।
अहम बैठक में पहुचे यूपी से सभी कोऑर्डिनेटर
बसपा मायावती की बैठक में 75 जिलों के सभी अध्यक्ष और नेशनल से लेकर प्रदेश स्तरीय सभी कोऑर्डिनेटर और पदाधिकारी मौजूद रहे। निकाय चुनाव और पार्टी को मजबूत किए जाने पर बसपा प्रमुख का साफ फोकस रहा। बसपा प्रमुख ने पार्टी के सभी नेताओं को बीते डेढ़ दशक की प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देते हुए आगामी चुनाव की तैयारियों पर आगे की रणनीति बताई। बसपा ने कई प्रयोग असफल होने के बाद पहली बार निकाय चुनाव को प्रमुख रूप से लड़ने का प्लान तैयार किया है। 2024 के चुनाव से पहले निकाय चुनाव के जरिए बसपा खुद को यूपी में एक बार फिर से मजबूत करने पर जुटी है।
लोकसभा से पहले निकाय चुनाव भी चुनौती
मायावती द्वारा रविवार को बुलाई गई है बैठक को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बनाई जाने वाली रणनीति के लिए अहम माना गया। बसपा प्रमुख ने सभी पदाधिकारियों के साथ मंथन करते हुए निकाय चुनाव में बेहतर कैंडिडेट और जातीय समीकरण के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारियों की एक रिपोर्ट मांगी है। सभी नेशनल कोऑर्डिनेटर और जोनल कोऑर्डिनेटर के माध्यम से निकाय चुनाव के अच्छे उम्मीदवार कौन हो सकते हैं, इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। 2024 चुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने को लेकर भी बसपा प्रमुख ने उचित दिशा निर्देश पार्टी के पदाधिकारियों को दिए हैं।
बसपा मुसलमानों को साथ में लगी
बसपा कोऑर्डिनेटर ने बताया कि दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यक लिए संघर्ष करने का फैसला पार्टी ने तैयार किया है। एक बार फिर से बसपा चुनावी मैदान में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक साथ उतारने का प्लान तैयार कर चुकी है। बसपा वापस मुसलमानों को साथ लाने का काम शुरू कर रही है। पार्टी में इमरान मसूद समेत कई मुस्लिम नेताओं को तवज्जों देने के साथ उन्हें शामिल भी कराया जा रहा है। पार्टी के सूत्र यह भी बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद पार्टी को नए रूप देने की कोशिश में जुटे हैं। उनकी अगुवाई में पार्टी दलित-पिछड़े वर्ग के युवाओं को जोड़ने पर काम कर रही है। इसके लिए पार्टी युवा दलित पिछड़े अल्पसंख्यक वर्ग की भूमिका बढ़ाए जाने को लेकर भी रणनीति तैयार की है।
बसपा दूसरे दलों से संपर्क रखने वाले बसपाइयों पर गिराएगी गाज
मिशन 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बसपा के कई नेता सपा और भाजपा के संपर्क में हैं। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि बीते दिनों अखिलेश यादव और भाजपा के नेताओं के साथ बसपा के कई नेताओं की फोटो भी सामने आई। बसपा के नेताओं के संपर्क को देखते हुए मायावती कभी भी उन नेताओं पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के मामले में कार्रवाई कर सकती हैं। फिलहाल यह कार्रवाई 2024 लोकसभा चुनाव को देखते हुए की जा सकती है।
बसपा को राष्ट्रीय का दर्जा बचाए रखने का आखिरी मौका
पिछले डेढ़ दशक से चुनाव दर चुनाव बसपा का वोट प्रतिशत गिरता जा रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 1993 के बाद सबसे कम वोट बसपा को मिला। 2022 के चुनाव में 13 प्रतिशत वोट बैंक बसपा का रह गया है। इससे पार्टी काफी खराब स्थिति में पहुंच गई है। यूपी में करीब 22 प्रतिशत दलित वोटर हैं। ऐसे में 13 प्रतिशत वोट मिले, इससे पार्टी अपना बेसकोट भी खो चुकी है। दिल्ली एमसीडी चुनाव में 1 प्रतिशत से भी कम वोट मिले। बसपा का ग्राफ 2012 यूपी विधानसभा चुनाव से गिर रहा है। 2017 में बसपा 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ 19 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत में इजाफा नहीं हुआ, लेकिन सपा के साथ गठबंधन का फायदा मिला। 10 लोकसभा सीट पार्टी ने जीती थी। ऐसे में बसपा की आगे की राजनीतिक राह काफी मुश्किल है। यह माना जा रहा है कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं बच पाएगा। इसके पीछे विधानमंडल दल से लेकर संसद में प्रतिनिधित्व का भी खतरा खड़ा हो गया है।
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